शॉर्ट सेलिंग (Short Selling) : किसी व्यक्ति को कुछ शेअर्स में गिरावट होगी ऐसा लगता हो तो शेअर्स पहले बेचकर और बाज़ार बंद होने से पहले फिर से खरीद के काम किया तो उसे 'शॉर्ट सेलिंग' कहा जाता है।
अगर आपके अंदाज के अनुसार शेअर्स का भाव गिरा और उस गिरावट पर खरीदी की तो उसका फायदा होता है।
उदा. किसी को एचडीएफसी बैंक में गिरावट होगी ऐसा लगता हो और चालू बाज़ार भाव ₹ 1000 होगा तब बेच दीजिए। इसके बाद भाव ₹ 990 होता है तब अच्छी खरीदी करने पर उन्हें ₹ 10 का मुनाफा हुआ ऐसा कहा जा सकता है।
इस तरह से खाते में शेअर्स न होने पर भी पहले बिक्री करके और बाद में खरीद के जो ट्रेडिंग किया जाता है उसे शॉर्ट सेलिंग कहते है।
आइये शॉर्ट सेलिंग को एक और उदाहरण से समझें –
आज टाटा कंपनी का शेयर, अभी 10:00 AM पर 500 रुपया के कीमत पर बिक रहा है।
तब कोई विनोद नाम का ट्रेडर इसे देखता है। उसे शेयर के कीमत कम होने का अनुमान होता है।
विनोद ने, टाटा के 10 शेयर, 5000 रुपये के कीमत में बाजार खुलते ही 10:00 AM पर बेच दिए। अब विनोद शेयर के कीमत गिरने का इंतजार करता है। अब कुछ मिनटों बाद जब शेयर का कीमत नीचे गिरकर 490 रुपये प्रति शेयर हो जाता है तब इस कीमत पर विनोद टाटा के 10 शेयर वापिस खरीद बाय लेता है।
ऊपर के उदाहरण में, विनोद ने 10 शेयर 5000 रुपये के कीमत में बेचे। फिर 4900 रुपये के कीमत से 10 ही शेयर खरीदे। इसमें 10 रुपये प्रति शेयर का लाभ हुआ। इसी को शॉर्ट सेलिंग कहेंगे।
शॉर्ट सेलिंग की जरूरी बातें।
- शॉर्ट सेलिंग में, ट्रेडर के खाते में शेयर वास्तव में नहीं होता जिसको वह बेचता है।
- इसमें ट्रेडर शेयर प्राइस के घटने का इंतजार करता है. जिससे उसको लाभ होता है।
- ट्रेडर को हर हाल में शेयर को वापस खरीदना ही चाहिए। वो भी उसी ट्रेडिंग डे पर।
- यदि कोई ट्रेडर शेयर बाय बैक नहीं कर पाता है तो वह पेनलिटी का हक़दार होगा।
- यह अधिकतर गिरते बाजार में की जाती है।
शॉर्ट सेलिंग के फायदे।
सबसे बड़ा फायदा जो ट्रेडर को दिखता है वह है – शेयर के घटते दम पर भी लाभ हो सकता है।
बाजार में लिक्विडिटी अधिक बनी रहती है।
ट्रेडर कम पूँजी में मार्जिन लेकर अधिक लाभ ले सकता है।
शॉर्ट सेलिंग के नुकसान।
यदि किसी स्थिति में शेयर बायबैक नहीं हो सके तो भरी पेनलिटी लग सकती है।
पोजीशन को आगे के लिए नहीं छोड़ सकते है।
शॉर्ट सेलिंग केवल इंट्राडे में ही संभव है।
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