डिलीवरी ट्रेडिंग क्या होता हैं ? डिलीवरी ट्रेडिंग के फायदें और नुकसान क्या हैं ?

डिलीवरी ट्रेडिंग क्या होता हैं ? डिलीवरी ट्रेडिंग के फायदें और नुकसान क्या हैं ?
What is Delivery Trading ? What are the Advantages and Disadvantages of Delivery Trading ?

Intra-Day Trading | ईन्ट्राडे ट्रेडिंग में एक दिन में शेअर्स की लेन-देन करके फायदा या नुकसान बुक किया जाता है।

ईन्ट्राडे ट्रेडिंग रोजाना बाजार के उतार-चढ़ाव का फायदा लेना होता है और यह एक दिन के लिए ही सीमित होता हैं उसे ईन्ट्राडे कहा जाता है। 

ईन्ट्राडे ट्रेडिंग में फायदा या नुकसान बाज़ार बंद होने से पहले ही बुक किया जाता है। 

Delivery Trading | इसके विपरित डिलीवरी ट्रेडिंग में जब आप किसी कंपनी का शेयर लेते हैं तो आपको ये पूरा हक होता है कि आप उस शेयर को कितने दिनों के लिए भी आपने पास रख सकतें हैं। 

एक दिन, एक सप्ताह, एक महीना, या एक साल ये आपके ऊपर निर्भर करता है की उस शेयर को आप कब बेचेंगे या कब तक होल्ड कर के रखेंगे। 

जब आप किसी शेयर को लॉन्ग टर्म में प्रॉफिट पाने के लिए अपनी अपने पास होल्ड कर के रखतें है तो उसे डिलीवरी ट्रेडिंग कहते हैं। इसे होल्डिंग्स भी कहते हैं।

डिलीवरी ट्रेडिंग के फायदें -

  • डिलीवरी ट्रेडिंग में निवेशक लम्बे समय तक अपने पास शेयर को रख सकते है। ये निवेशको के लॉन्ग टर्म के लिए फायदेमंद है।

  • आप जिस भी कंपनी में निवेश करते है उनके द्वारा दिया गया लाभांश मिलता है।

  • शेयर बाजार में सबसे ज्यादा रिटर्न लॉन्ग टर्म ट्रेडिंग से होता है।

  • डिलीवरी ट्रेड मैं ब्रोकरेज चार्जेस काफी कम होते हैं और जिनकी वजह से डिलीवरी ट्रेड काफी प्रॉफिटेबल या लाभदायक साबित होते हैं।

  • डिलीवरी ट्रेडिंग में एक फायदा ये है की निवेशक अपने शेयर को तब तक होल्ड करके रख सकता है जब तक उस शेयर को बेचने का सही समय ना आ जाये।

  • शेयर खरीदते और बेचते समय ब्रोकरेज फीस नहीं देना होता है डिलीवरी ट्रेडिंग ये एक बड़ा फायदा है।

डिलीवरी ट्रेडिंग के नुकशान -

  • डिलीवरी ट्रेडिंग में शेयर लेने के लिए निवेशकों को पूरे पैसे देना होता है। इंट्राडे में मर्जिन मिल जाता है पर डिलीवरी में किसी भी प्रकार का मार्जिन नहीं मिलता हैं।

  • यह एक लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट है इसमे इन्वेस्टरो को धर्य रखना होता है।

  • स्टॉक मार्केट क्रेश होने का डर बना रहता है इसलिए इसमें नुकशान होने का खतरा रहता है।

  • अगर अच्छे से रिसर्ज नहीं किए हुए कंपनी के शेयर में होल्डिंग लेते है तो कभी कभी नुकसान भी उठाना पड़ सकता हैं।

  • शेयर डिलीवरी ट्रेडिंग में खरीदने के बाद अगर नीचे गिर जाता है तो उसमें शेयर धारक को नुकसान भी हो सकता है इसलिए हमेशा स्टॉपलॉस लगाकर ट्रेड करना चाहिए।

डिलीवरी ट्रेडिंग शुल्क - 

डिलीवरी ट्रेडिंग में सबसे पहला शुल्क GST का लगता है ये GST का शुल्क 18% देना होता है वो भी ब्रोकरेज और ट्रांजेक्शन चार्ज दोनों पर देना होता है।

भारत में स्टाम्प एक्ट ने गवर्नमेंट को डिलीवरी ट्रेडिंग पर स्टाम्प शुल्क लगाया गया है।

स्टाम्प ड्यूटी देना होता है जो हर राज्य की अलग अलग होती है इसके अलावा कुछ और चार्ज देने होते है जैसे अनुअल चार्ज और टैक्स चार्ज आपको पे करने होते है |

इसमें STT (Security Transaction Tax) लगता है जो की 0.25% खरीद और बिक्री पर लगता है इसके अलावा CTT और ट्रांजेक्शन चार्ज भी डिलीवरी ट्रेडिंग में शामिल है।

Exchange Transition Charge की इसमें NSE और BSE कुछ चार्ज लेते है यह चार्ज आपको 0.00325% खरीद और बिक्री पर देना होता है।

ब्रोकरेज चार्ज आपको 0.2% देना ही पड़ता है कुछ ब्रोकरेज चार्ज जीरो होता है और फुल ब्रोकरेज सर्विस में 0.2% ब्रोकरेज देना ही पड़ता है।S

EBI (Security And Exchange Board Of India) चार्ज भी लगता है वो चार्ज 0.0001% का जो शेयर खरीद और बिक्री पर लगता है।

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